लॉकडाउन तो सभी ने देखा होगा, उस बारे में कुछ बताने की जरुरत तो नहीं होगी। लॉकडाउन के दरम्यान लोगों ने काफी समस्याओं का सामना किया है जैसे की लगभग सभी के काम धंधे बंद हो गए, लोग एक ही जगह पर कैद हो गए। अन्य बहोत सी समस्याए हुई।
अब लॉकडाउन जैसे जैसे अनलॉक हो रहा है वैसे वैसे तकलीफ और ज्यादा बढ़ रही है। लॉकडाउन के बाद अभी तक बहोत से लोगों की नौकरियाँ जा चुकी है कई लोगों के धंधे व्यापार बंद हो चुके है। इस लॉकडाउन में सबसे बड़ी मंदी आ चुकी है जिसमे रोजगार का पता नहीं लेकिन महंगाई अपने चरम पर है।
इस लॉकडाउन की जिंदगी में आराम तो बहोत है लेकिन जिंदगी जीने के लिए पैसे नहीं है।
राशन तो सरकार दे रही है लेकिन सब्जी खरीदने के पैसे नहीं है।
शराब तो बिक रही है लेकिन किताबे और कलम खरीदने के पैसे नहीं है।
इसका दोष किसपर मढ़े पता नहीं , दोष सरकार का है या फिर चीन का हम तो मुफ्त में मरे गए, कितनी अच्छी जिंदगी चल रही थी २०० या ५०० कमा के जिंदगी अच्छी चल रही थी लेकिन सब ख़त्म हो गया है।
अब जिन्होंने किराये पर दुकान या मकान लिया था उनके पास तो किराया देने के लिए कुछ है ही नहीं दुकान/मकान खाली करने के आलावा कोई रास्ता नहीं है, सारी जमा पूंजी तो लॉकडाउन में ख़त्म हो गई।
अब आप कहेंगे की सरकार ने तो किराया लेने से माना किया था तब आप किराया क्यों दे रहे है?
जवाब- भई किराया देने के लिए तो हमारे पास है ही नहीं लेकिन जो डिपोजिट मकान मालिक के पास जमा है तब तक ही वे हमें रहने देंगे। डिपॉज़िट का किराये में एडजस्ट होने के बाद कई लोगो के दुकान/मकान खाली करवाए जा रहे है। ऐसी बहोत सी जानकारी मेरे सामने आ रही है.
कल शाम को एक जगह पर अकेला खड़ा था सामने से आता हुआ एक आदमी मुझसे १०-२० रूपये मांगता है जो मैं उसे नहीं दे पाता हु क्योंकि मेरे पास भी नहीं है। वह व्यक्ति दिखने में सम्पन्न था, उसके पीछे जाकर मैंने देखा की उसने आगे किसी से पैसे नहीं मांगे।
तब मुझे काफी आत्मग्लानि हुई। वो व्यक्ति जिसे मैंने भिखारी समझा था वो हामी में से एक था। शायद उसके पास अपने बच्चों को खिलने के लिए कुछ नहीं था या फिर खुद ही कई दिनों से भूखा हो।
मै वहां पर अकेला था इसलिए मुझसे ही पैसे मांगे। या परिवार को भूखा देखने के बाद हाथ खुद बी खुद मांगने के लिए उठ गए।
मई सर्कार से निवेदन करता हु की हमें अपने हल पर छोड़ दिया जाये, भिखारी की मौत मरने अच्छा है की बीमारी से मर जाये। अपने आँखों के सामने अपनो को भीख मंगाते देखना ही आपातकाल है।

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