12वीं तक पढ़े सिकर में रहने वाले किसान महेंद्र बीरड़ा ने पानी और बिजली बचाने के लिए नई टेक्नोलॉजी का पंप बनाया है, जो सिर्फ 80 रुपए के खर्च में दो बीघा खेत में लगे पौधों की सिंचाई करता है। इससे पानी और बिजली बर्बाद नहीं होती।
महेंद्र की नई टेक्नोलॉली का पंप कैसे काम करता है ?
महेंद्र ने बरसाती पानी को जमा कर लिया था, लेकिन पौधों को पानी देने के लिए बिजली का संकट आ गया। इसलिए देशी आविष्कार किया। इन्होंने बाइक के साथ पंप जोड़ा। बाइक को स्टार्ट करने के बाद पंप तीन एचपी पावर देता है और पानी खींच लेता है। पेड़ों में नीचे थैली बांध दी ताकि पानी इधर-उधर बर्बाद न हो।
बाइक से जुड़ा पंप प्रति मिनट 40 लीटर पानी खींचता है। एक लीटर पेट्रोल से 30 फीट नीचे से 26 हजार लीटर पानी खींचा जा सकता है। उनकी इस टेक्नोलॉजी के लिए बिजली कनेक्शन की जरूरत नहीं है। अगर इतने काम के लिए वो बिजली कनेक्शन लेते तो हर महीने 1500 रुपए खर्च होता।
बाइक से जुड़ा पंप प्रति मिनट 40 लीटर पानी खींचता है। एक लीटर पेट्रोल से 30 फीट नीचे से 26 हजार लीटर पानी खींचा जा सकता है। उनकी इस टेक्नोलॉजी के लिए बिजली कनेक्शन की जरूरत नहीं है। अगर इतने काम के लिए वो बिजली कनेक्शन लेते तो हर महीने 1500 रुपए खर्च होता।
यह है प्रक्रिया
टायर की हवा निकाल चेन चढ़ाते हैं। फिर हवा भरते ही टायर के साथ चेन टाइट हो जाती है। पंप पर गिरारी लगाते हैं। पंप में दो पाइप लगती हैं। एक से पानी खींचते हैं, दूसरी से पौधों में सिंचाई।
3 एचपी मोटर जितनी क्षमता, लाइट की चिंता भी नहीं
महेंद्र ने बताया कि हर मोटर की तरह एंपुलर लगाया। इस तरह सेट किया, जिससे कैपिसिटी डबल हो गई। हैड भी अलग
से डिजायन किया ताकि हैड व पाइप फटे नहीं। बाइक को चार नंबर गियर डालकर छोड़ देने पर बिना रेस के टायर चलता है। इससे प्रति मिनट 2900 राउंड आ रहे हैं और पंप चलने लगता है। 100 फीट गहराई से पानी खींच लेता है। हर दिन 5 हजार लीटर पानी निकालते हैं। इसमें सिर्फ 20 रु. का पेट्रोल खर्च होता है।45 असफलताओं के बाद हुआ सफल
सबसे पहले सोलर पंप का आइडिया आया, जिसमें पहले डेढ़ लाख रुपए खर्चा था। इसमें हर साल बैट्री बदलने का 12 हजार रुपए खर्चा आता। इंजन का विचार आया। इसमें हर दिन 250 रुपए खर्चा और जनरेटर पर 35 हजार रुपए लगते थे। यह भी मुश्किल था। बिजली का हर महीने औसत 1500 रुपए का बिल आता। आखिरकार खुद ही पंप बनाकर बाइक से जोड़ने का आइडिया आ गया। चार महीने लगे और 46वीं बार में सफल हुए।
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